ज़िन्दगी का सफर ख़त्म होने लगा
अब हमारे सपन में थकन आ गई,
मैंने चाहा अभी और जीना मगर
मेरी साँसों में ग़म की घुटन आ गई।
रात बढ़ने लगी, चाँद घटने लगा
चलते-चलते बहारों को नींद आ गई,
मैं जगी रात भर देखती ही रही
कैसे बुझती गई चाँद की चाँदनी।
रह गए अर्ध-निर्लिप्त मेरे नयन
स्वप्न ने थाम बाहें मेरी छोड़ दीं,
हो गयीं बावरी श्याम पलकें मेरी
ज़िन्दगी मेरी बन कर धुंआ उड़ चली।
तन तपन में झुलसता रहा उम्र भर
अश्रु की बूँद से अब फफोले पड़े,
घाव बढ़ता गया, दर्द बढ़ता गया
मैं सिसकती रही, उम्र घटती रही।
याद लेकर ही जी लूँ कोई उम्र भर
हर कथा बन गई पर व्यथा शाम की,
भूलने को तपिश मैंने पी ही ली मै
वो कसक बन हलक में उतरती रही।
अब हमारे सपन में थकन आ गई,
मैंने चाहा अभी और जीना मगर
मेरी साँसों में ग़म की घुटन आ गई।
रात बढ़ने लगी, चाँद घटने लगा
चलते-चलते बहारों को नींद आ गई,
मैं जगी रात भर देखती ही रही
कैसे बुझती गई चाँद की चाँदनी।
रह गए अर्ध-निर्लिप्त मेरे नयन
स्वप्न ने थाम बाहें मेरी छोड़ दीं,
हो गयीं बावरी श्याम पलकें मेरी
ज़िन्दगी मेरी बन कर धुंआ उड़ चली।
तन तपन में झुलसता रहा उम्र भर
अश्रु की बूँद से अब फफोले पड़े,
घाव बढ़ता गया, दर्द बढ़ता गया
मैं सिसकती रही, उम्र घटती रही।
याद लेकर ही जी लूँ कोई उम्र भर
हर कथा बन गई पर व्यथा शाम की,
भूलने को तपिश मैंने पी ही ली मै
वो कसक बन हलक में उतरती रही।
Madhuri ji
ReplyDeleteaapko padhna bahut acha laga
aapki rachna bahur prabhavshali hai.
shubkamna
"रात बढ़ने लगी, चाँद घटने लगा
ReplyDeleteचलते-चलते बहारों को नींद आ गई,
मैं जगी रात भर देखती ही रही
कैसे बुझती गई चाँद की चाँदनी।"
...khubsurat prastutikaran.....madhuri ji aap kee lekhni main gahrayee ek ek shabd main dikhtee hai...aapko saadhuwaad!
...Ehsaas
sashakt abhivyakti ,nadiya si bahti ,man ko lubhaati ,bahut hi sunder hai rachna aapki ...
ReplyDeleteumeed karti hoon aapko padhne ka avsar prapt hota rahega ...
very nice blog...
ReplyDeletehttp://shayrionline.blogspot.com/
तन तपन में झुलसता रहा उम्र भर
ReplyDeleteअश्रु की बूँद से अब फफोले पड़े,
घाव बढ़ता गया, दर्द बढ़ता गया
मैं सिसकती रही, उम्र घटती रही।
kya gazab ka cunaav hai shabdon ka ! bahut khoob
अश्रु की बूँद से अब फफोले पड़े,
ReplyDeleteashru se jiyadah ushna, ashru se jiyadah sheetal kuchh bhi nahin, ashk to attar('essence') hoten hai antar ke.
WAH !
"Zingni ka safar".....
ReplyDeleteMaa'm i dont have words for dis poem....
its so touching....