जब आज है सुंदर सृजन,
मन घूमता है क्यों विकल?
तम को ह्रदय में बांध जड़,
लखता नहीं क्यों ज्योति पल?
पलकों तले संसार रच
ढल गए दो-चार पल,
आँखें ठगी-सी रह गयीं
देख विधि का कलित छल।
एक मीठी रागिनी में
सुर उठे जब दूर से,
बंध गए विश्वास सारे
सरगमों में गूंज के।
गुनगुनी सी धूप सिमटी
सांझ ने करवट बदल ली,
कालिमा दर पर्त पसरी
नींद आँखों में कसकती।
राह में हैं शूल चुभते
फूटते हैं पग के छाले,
रिस भी जाती है बिवाई
आह सी मिलती कमाई।
टिमटिमा कर रात रोती
पंखुरी भरती है साखी,
पूछ लो धरती-गगन से
राह वह चलती ही जाती।
चक्र वर्तुल काल का है
भूत से भवितव्य तक,
रख धनात्मक भाव, री सखि!
हो कभी ना मन विकल..!!
मन घूमता है क्यों विकल?
तम को ह्रदय में बांध जड़,
लखता नहीं क्यों ज्योति पल?
पलकों तले संसार रच
ढल गए दो-चार पल,
आँखें ठगी-सी रह गयीं
देख विधि का कलित छल।
एक मीठी रागिनी में
सुर उठे जब दूर से,
बंध गए विश्वास सारे
सरगमों में गूंज के।
गुनगुनी सी धूप सिमटी
सांझ ने करवट बदल ली,
कालिमा दर पर्त पसरी
नींद आँखों में कसकती।
राह में हैं शूल चुभते
फूटते हैं पग के छाले,
रिस भी जाती है बिवाई
आह सी मिलती कमाई।
टिमटिमा कर रात रोती
पंखुरी भरती है साखी,
पूछ लो धरती-गगन से
राह वह चलती ही जाती।
चक्र वर्तुल काल का है
भूत से भवितव्य तक,
रख धनात्मक भाव, री सखि!
हो कभी ना मन विकल..!!
राह में हैं शूल चुभते
ReplyDeleteफूटते हैं पग के छाले,
रिस भी जाती है बिवाई
आह सी मिलती कमाई।
गूढ़ अर्थ लिए सुंदर रचना
रचना का हर छंद गहनतम भावों को समेटे हुये है --
ReplyDeleteगुनगुनी सी धूप सिमटी
सांझ ने करवट बदल ली,
कालिमा दर पर्त पसरी
नींद आँखों में कसकती।
इतना सब होने पर भी धनात्मक भाव रख मन को विकल न होने दें ....सार्थक संदेश देती सुंदर रचना
वाह माधुरी जी....
ReplyDeleteइस सुन्दर रचना के लिए बधाई...
बहुत बढ़िया ,मनभावन पोस्ट.
अनु
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार o9-08 -2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में .... लंबे ब्रेक के बाद .
जीवन दर्शन...
ReplyDeleteचक्र वर्तुल काल का है
भूत से भवितव्य तक,
रख धनात्मक भाव, री सखि!
हो कभी ना मन विकल..!!
बहुत सुन्दर सचित्र चिंतनशील रचना ..
ReplyDeleteसुन्दर रचना ... भावमय ...
ReplyDeleteअभिनव प्रस्तुति....
ReplyDeletepost on your Poems in Khamosh, Khamoshi aur Hum....
http://anitanihalani.blogspot.in/2012/11/blog-post_16.html
चक्र वर्तुल काल का है
ReplyDeleteभूत से भवितव्य तक,
रख धनात्मक भाव, री सखि!
हो कभी ना मन विकल..!!
♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
♥♥नव वर्ष मंगलमय हो !♥♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥
जब आज है सुंदर सृजन,
मन घूमता है क्यों विकल?
तम को ह्रदय में बांध जड़,
लखता नहीं क्यों ज्योति पल?
अत्युत्कृष्ट !
सुंदर छंद ! प्रवाहमान रचना !
आदरणीया डॉ. माधुरी लता पांडेय जी
आपके ब्लॉग पर आकर हार्दिक प्रसन्नता हुई …
जितनी रचनाएं देखीं, अच्छी लगी ...
शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteआज की चर्चा : ज़िन्दगी एक संघर्ष -- हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल चर्चा : अंक-005
हिंदी दुनिया -- शुभारंभ