रेती में धूप ढले
सिन्दूर में शाम
सागर में रात ढले
ले किसका नाम?
छिटकी-सी खपरैलें
बिखरे-से फूस,
गाँव की मडैया में
सिमटी-सी भू,
खूँटे में चौपाये
सूखी-सी नाँद,
पनिहारिन राह तके
ले किसका नाम?
पिछवाड़े फूल झरे
आँगन में धूल,
द्वारे पर उग आए
कांटे, बबूल।
दीवट पर आस धरे
सांकल पे धाम
देहरी दो नैन जले
ले किसका नाम?
बतियाते मौन रहे
बीते हर जून,
बाबा के हुक्के में
शेष नहीं धूम।
चूल्हे बिन अंगारे
घूरों पे राख,
धनिया गुहार करे
ले किसका नाम?
ले किसका नाम?
ReplyDeletehridaya ko sparsh kar raha hai sukomal pankh ki manind. padhna achha lag raha hai.
रेत के सपने
ReplyDeleteनहीं होते अपने
छिटकी-सी धूप
बिखराती रूप ....
शाबाश बहुत बढिया रचना
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टीम हमारीवाणी